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तुग़लकाबाद किले का इतिहास - History Of Tughlakabad

तुग़लकाबाद किला दिल्ली का ध्वस्त किया हुआ किला है। 6 किलोमीटर तक फैले इस किले का निर्माण तुगलक साम्राज्य के संस्थापक घैसुद्दीन ने सन 1321 में दिल्ली सल्तनत में करवाया था।  लेकिन 1327 में उन्हें इसे त्यागना पड़ा था।  इसके आस-पास के इलाकों को तुग़लकाबाद स्थानिक क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। तुग़लक़ ने इस किले के साथ-साथ क़ुतुब-बदरपुर रोड का निर्माण भी करवाया, जो नए शहर को ग्रैंड ट्रंक रोड से जोड़ती है।  इस रोड को आज मेहरोली-बदरपुर रोड के नाम से भी जाना जाता हैं।

Tughlakabad Fort

तुग़लकाबाद किले का इतिहास - History Of Tughlakabad
निजामुद्दीन औलिया का श्राप (अभिशाप) :

घैसुद्दीन को एक उदार शासक के रूप में जाना जाता था।  जबकि वह अपने सपने में दिखने वाले किलों के बारे में कुछ ज्यादा ही उत्साही हुआ करता था।  इसि के चलते उसने एक हुक्म भी जारी किया कि दिल्ली के सारे मजदूर उसी के किले में काम करेंगे।  इससे सूफी संत निजामुद्दीन औलिया काफी क्रोधित हो गए, क्योंकि इस हुक्म के बाद उनके कुएं में किया जा रहा काम रुक गया था।  

इसके बाद संत ने अभीशाप का उच्चार किया, जिसका असर इतिहास से लेकर आज भी हमें दिखाई देता है। यारहेज्जुअर, याबसेगयुज्जर इसका अर्थ यह होता है की "यहां के लोग यहीं रहेंगे और यहाँ केवल गुज्जर राज करेंगे। " कहा जाता है कि इसके बाद जब सल्तनत का पतन हुआ, तब गुज्जर ने ही इस किले पर कब्जा किया था और आज भी तुग़लकाबाद गाँव किले में ही बसा हुआ है। 


शासन की मृत्यु :

इसके बाद एक और संत हुनुज दिल्लीदुरूस्त ने भी अभिशाप दिया था।  उस समय शासक बंगाल के एक अभियान में तल्लीन थे।  जिसमे उन्हें सफलता भी मिली और फिर लौटकर दिल्ली वापस आ रहे थे।  जबकि उसका बेटा मुहम्मद बिन तुग़लक़ उनसे उत्तर प्रदेश के करा में मिला।  कहा जाता है कि प्रिंस के आदेश के बाद ही सम्राट के शामियानों को उनपर गिराया गया था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी।  उनकी मृत्यु सन 1324 में हुई थी। 


घैसुद्दीन तुग़लक़ की समाधी :

घैसुद्दीन तुग़लक़ की समाधी दुर्ग की दक्षिणी चौकी के पास पक्की सड़क से जुडी हुई है।  यह पक्की सड़क 600 फीट लम्बी है, जो 27 मेहराब द्वारा समर्थित है।  कहा जाता है कि 20 वीं शताब्दी में इस पक्की सड़क के कुछ भाग को महरौली-बदरपुर रोड में परिवर्तित क्र दिया गया।  प्राचीन पीपल के वृक्ष को पार करने के बाद घैसुद्दीन तुग़लक़ के किले का एक विशाल प्रवेश द्वार आता है, जिसे लाल पत्थरों से बनाया गया है।  


घैसुद्दीन की वास्तविक समाधी को एकल गुंबददार वर्ग समाधी के आकार में बनाया गया है, जिसकी ढलान वाली दीवारों को रेलिंग द्वारा ताज पहनाया गया है।  कहा जाता है कि समाधि की दीवारों का निर्माण ग्रेनाइट से किया गया है और समाधी के किनारों को लाल पत्थरों से सुशोभित किया गया है और इसे सजाने के लिए मार्बल का उपयोग भी किया गया है। 


उनकी समाधी के अंदर 3 कब्र हैं : बीच की कब्र घैसुद्दीन की है और दूसरी कब्र उनकी पत्नी एवं और उनके उत्तराधिकारी मुहम्मद बिन तुग़लक़ की है।  दीवार के उत्तर-पश्चिमी भाग पर पिल्लरों से जुड़े गलियारे में एक और अष्टकोणीय कब्र का निर्माण किया गया है।  इसी आकार में छोटे मार्बल का उपयोग कर उसके दरवाजों के ऊपर लाल पत्थरों का स्लैब भी बनाया गया है।  


दरवाजों पर लिखे शिलालेख के अनुसार इसके दक्षिणी द्वार पर बानी कब्र जफ़र खान की है।  सूत्रों के अनुसार जफ़र खान नई किले की चौकियों का निर्माण बड़े ही सुन्दर तरीके से किया था। 


वास्तुकला :
तुग़लकाबाद आज भी विशाल पत्थरों से किलों के लिए प्रसिद्द है।  तुग़लक़ साम्राज्य के शासनकाल में यहां बहुत सी ऐतिहासिक धरोहरों का निर्माण किया गया था।  साथ ही यहां 10 से 15 मीटर ऊँची घुमावदार दीवारों का भी निर्माण किया गया है।  जानकारों के अनुसार इस शहर में पहले कुल 52 प्रवेश द्वार थे, जिनमे केवल 13 आज बचे हुए हैं।  इस सुन्दर और मनमोहक शहर में आज केवल 7 वर्षा जल टैंक बचे हुए हैं।  


तुग़लकाबाद को तीन भागों में विभाजित किया गया है :- 
  1. टावर के साथ बनाये गए गढ़ का सर्वोच्च पॉइंट बिजाई-मंडल है। 
  2. विशाल शहरी इलाके निर्माण घरीं के साथ इसके द्वार के बीच में एक आयताकार के साथ किया गयाथा। 
  3. जबकि तीसरे भाग के आसन्न महल क्षेत्र में शाही लोग रहते थे।  टावर के नीचे का यह भाग हमें आज भी देखने को मिलता है। 
वर्तमान मे शहर का ज्यादातर भाग घनी कांटेदार वनस्पतियों की वजह से दुर्गम है।  शहर की झीलों के आस-पास वर्तमान में काफी आधुनिक लोग रहते हैं।


तुग़लकाबाद के दक्षिण में विशाल कृत्रिम पानी जलाशय है, जहाँ पक्की सड़क पर घैसुद्दीन  भी बानी हुई है।  मंदिर की दक्षिणी चौकी से जुडी यह सड़क आज भी हमें देखने को मिलती है। 

Aadilabad Fort

किले के दक्षिणी-पूर्वी भाग में हमें आदिलाबाद के किले देखने को मिलते हैं, जिसका निर्माण घैसुद्दीन के बाद उनके उत्तराधिकारी मुहम्मद तुगलाक (1325-51 ) ने करवाया था।  तुग़लकाबाद किले के भीतर हमें बहुत सी छोटी-छोटी और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहरें दिखाई देती हैं।  


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